पर्वत दया की भीख मांग रहे हैं ।

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नई दिल्ली ।

भारत देश की संस्कृति एवं सभ्यता के प्रतीक स्वरूप यहाँ की प्राचीन धरोहर, रीति रिवाज, परम्पराएं एवं संस्कार आदि हैं। भारत देश के पर्वत अन्य देशों की भांति साधारण पहाड़ नहीं है, वरन् इन पर्वतों पर अनेकों देवी-देवता प्रतिष्ठित हैं, उनमें भगवान शिव, भगवान विष्णु एवं माँ दुर्गा आदि अन्य देवी-देवता अनेकों रूपों में वास करते हैं। ये पर्वत न केवल देवी-देवताओं के पवित्र स्थान अपितु इन पर्वतों पर अनेकों दुर्लभ औषधियाँ भी प्रत्रुर मात्रा में पायी जाती हैं, जिनके प्रयोग से अनेकों असाध्य रोगों का इलाज किया जाता है। इन पर्वतों पर संजीवनी बूटी भी विद्यमान है, जिसको बजरंग बली हनुमान जी ने सुषेन वैद्य के निर्देश पर लाकर लक्ष्मण जी के प्राणों की रक्षा की थी एवं इन्हीं पर्वत श्रृंखलाओं से गंगा के पवित्र जल प्रवाहित होता है। ये पर्वत हमारी संस्कृति के रक्षक भी हैं, इन्हीं पर्वतों ने हम भारतीयों की मुगलों तथा अंग्रेजो के आक्रमण से रक्षा की। मुगल बादशाह अकबर भी माँ ज्वालाजी के आगे नतमस्तक हुआ। अंग्रेजो ने सम्पूर्ण देश को लूटा, परन्तु अपनी विश्राम स्थली इन्हीं पर्वतों पर ही स्थापित की एवं वहाँ के संसाधनों का भी अपनी अय्याशी के लिए भरपूर उपयोग किया।

आज स्वतंत्रता प्राप्ति के 76 वर्षों के पश्चात भी हम अपने स्वभाव में परिवर्तन नहीं कर पाये हैं। भारत की सरकारों के द्वारा अपने देश को विकसित देशों के समकक्ष लाने की होड़ में नित् नवीन परियोजना के अन्तर्गत बहुमंजली इमारतों और विभिन्न उद्योगों की स्थापना करके पर्वतों को हानि पहुँचायी है। उनके प्राकृतिक सौन्दर्य से छेड़छाड़ की जा रही है, परन्तु हम विकास के चश्में के सामने हिमालय देव की पुकार, जो विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के रूप में संकेत दे रही है, उसको एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल रहें हैं।

जोशीमठ जोकि आदिशंकराचार्य जी का निवास स्थान रहा है, वहाँ पर सरकार द्वारा विवाह मंडप, रेस्टोरेंट, होटल आदि में हर प्रकार का भोजन एवं अन्य सब कार्यो की अनुमति देकर उस पवित्र स्थान का अपमान करके पाप के भागीदार बन रहें हैं। जब-जब मनुष्य ने अपनी सीमाओं का उल्लंघन किया, ईश्वर ने उसको दंड देने में तनिक भी विलम्ब नहीं किया। यदि हम इतिहास पर दृष्टिपात करें, तो महाभारत के अन्तर्गत कंस जैसे शक्तिशाली का भी घमंड चूर हुआ, समस्त वेदों के ज्ञाता लंकाधीश रावण का भी दंभ नष्ट हुआ। वर्तमान में विकास की परियोजनाओं के कारण ही जोशीमठ में जनता के अपने पुर्वजों के घरों को अश्रुभरे नेत्रों से ध्वस्त होते हुए देख रहीं हैं। परिवार के परिवार अपनी बर्बादी को देखनें के लिए विवश हैं। इस त्रासदी का कौन जिम्मेदार होगा? यह दुर्घटना हम सबके लिए एक सबक है। हिमालय पर्वत देवता स्वरूप हैं, हम सभी के द्वारा उनको सम्पूर्ण सम्मान देने की आवश्यकता है, अन्यथा हम सभी को इनके प्रकोप को सहने के लिए तत्पर रहना होगा। भारत के पर्वत स्वभाव से शांत तथा असीम सौन्दर्य के प्रतीक हैं उनको शांत रखने के लिए, उनके सौन्दर्य का हनन नहीं करना ही, श्रेयस्कर होगा।

वरिष्ठ पत्रकार – योगेश मोहन


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