आरक्षण का जिन्न ।

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नई दिल्ली ।

भारत में आरक्षण का ज्वलंत मुद्दा जब भी अपने विकराल रूप में आया है, तभी सरकार के द्वारा जनता के आक्रोश को शान्त करने हेतु उस समस्या के समाधान स्वरूप कोई न कोई निर्णय अवश्य लिया गया। इस आरक्षण के मुद्दे को विभिन्न दलों के नेताओं के द्वारा एक अस्त्र के रूप उपयोग में लाया गया। यह एक ऐसा अभूतपूर्व जादुई चिराग है, जिसको कोई भी नेता, कभी भी अपनी सुविधानुसार प्रयोग में लाकर, पुनः यथा स्थिति में रख लेता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्ष पश्चात भी यह जिन्न अपना कार्य पूर्ण ईमानदारी व वफादारी से कर रहा हैं क्योंकि इसके उपयोगकर्ता को इसके प्रयोग की विधि का पूर्णतया संज्ञान हो चुका है। यह आरक्षण समय-समय पर सबका प्रिय रहा है। अतः इसको कोई भी समाप्त करना नहीं चाहता। इसका प्रभाव चाहें सकारात्मक हो अथवा नकारात्मक, सभी भली-भांति परिचित हैं परन्तु अब भारत की जनता अपने हित एवं अहित के लिए शिक्षित हो चुकी है। अतः भारत की उन्नति के लिए इसको शीघ्र समाप्त करना ही श्रेयस्कर होगा।

आरक्षण क्यों और किसे चाहिए? इस तथ्य का गम्भीरता से विश्लेषण करना भी आवश्यक है। हमारे संविधान रचियताओं ने आरक्षण की आवश्यकता पर इसलिए महत्व दिया था, क्योंकि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात निम्न तथा उच्च आयवर्ग के मध्य अंतर निरन्तर बढ़ता जा रहा था। उस समय हमारा देश पूर्णतया कृषि प्रधान था तथा जिनके पास कृषि योग्य विशाल भूभाग था, वे अधिकांश अंग्रेजों के चाटुकार हुआ करते थे। अधिकांश ग्रामों की जनसंख्या 100-150 की होती थी, उनमें से मात्र 5-6 परिवार ही सम्पन्न एवं अन्य शेष कामगार थे जोकि गरीबी का जीवन व्यतीत करते थे। इन कामगारों में भी अधिकांश दलित तथा पिछड़े वर्ग से सम्बन्धित थे, उनके जीवन स्तर को सुधारने के लिए उस समय आरक्षण आवश्यक हो चुका था।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात कृषि से प्राप्त आय में अत्यधिक नकारात्मक रूझान देखने को मिला। जो कभी ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करते थे, यथा- जाट, गुर्जर आदि भी गरीबी की रेखा से नीचे आने प्रारम्भ हो गए और उन्होंने भी पिछड़ा वर्ग के रूप में संघर्ष करके आरक्षण प्राप्त कर लिया। उपरोक्त तथ्य से यह स्पष्ट होता है कि आरक्षण और आय, एक दूसरे के पूरक हैं। यदि देश में आय का स्तर नकारात्मक होगा तो आरक्षण का जिन्न भी स्वतः बलवान हो जाएगा। आरक्षण की समस्या का समाधान आरक्षण देने से सम्भव नहीं होगा। इसकी समाप्ति हेतु देश में आय के स्रोतों में वृद्धि करनी होगी। वर्तमान समय में सरकार केवल 6 प्रतिशत नागरिकों को ही नौकरी देती है।

इस संख्या में सरकार कितना भी आरक्षण प्रदान करें, जनता का पूर्ण हित नहीं होगा, क्योंकि शेष 94 प्रतिशत को तो अन्य प्रकार से आय के स्रोत में वृद्धि करके जीवन यापन करना पड़ेगा। सरकार को आय के स्रोत बढ़ाने होंगे, जिसके लिए शिक्षा के महत्व को समझना होगा तभी समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार समाप्त हो सकेगा, जोकि आज अपने विकराल रूप में विद्यमान है। सरकार को दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कदम यह उठाना चाहिए कि जिस परिवार को पूर्व में आरक्षण का लाभ प्राप्त हो चुका है, उस परिवार के सदस्य को पुनः आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। इससे जो आज आरक्षण के वास्तविक पात्र हैं, उनको आरक्षण का लाभ प्राप्त हो सकेगा और इससे उनके परिवार का जीवन स्तर भी ऊँचा उठ पाएगा।
देश की समस्त जनता को न्याय संगत अधिकार प्रदान करके इस आरक्षण रूपी जिन्न को समूल नष्ट करना होगा। राजनेताओं को भी अपने व्यक्तिगत लाभ से ऊपर उठकर चिंतन करना होगा, क्योकि यह जादुई चिराग आज जिन नेताओं को राजनीति में क्षणिक लाभ पहुँचा रहा है, भविष्य में उन्हीं को किसी न किसी स्तर पर हानिकारक सिद्ध होगा।

वरिष्ठ पत्रकार – योगेश मोहन


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