राज्यपालों की भूमिका ।

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नई दिल्ली ।

भारतीय संविधान के अन्तर्गत राष्ट्रपति देश का तथा राज्यपाल राज्य का प्रथम नागरिक एवं संविधान का पालक होता है। स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की स्वतंत्रता हेतु अपने प्राण न्यौछावर करते समय यह अवश्य विचार किया होगा कि उनके बलिदान के पश्चात भारतीय संस्कृति के अनुरूप भारत में राम राज्य की स्थापना होगी। अतीत पर दृष्टिपात करें तो स्पष्ट होता है कि राम राज्य में सब नागरिकों को सामान अधिकार प्राप्त थे। चूंकि उस युग में राजा एक ईमानदार व्यक्ति होता था, इसलिए उसके मंत्री, न्यायाधिकारी, सैनिक एवं अन्य शासन-प्रशासन के अधिकारी भी पूर्ण कर्तव्यनिष्ठा के साथ अपने-अपने निर्धारित कार्यो को सम्पन्न करते थे। भ्रष्टाचार, व्याभिचार, भाई-भतीजावाद एवं राजद्रोही आदि सामाजिक बुराईयों के विषय में सुनने को भी नहीं मिलता था और यही स्वप्न हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने भी देखा होगा तभी उन्होंने हंसते-हंसते अंग्रेजो की गोलियाँ खाई एवं फांसी के फंदो पर लटक गए।

स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ वर्षों के पश्चात तक सभी कार्य, व्यवस्थाएं संविधान के अनुरूप उत्तम प्रकार से चलती रहीं। परन्तु शनै-शनै असंवैधानिक कार्यो से भारतीय लोकतंत्र की गरिमा खंडित होनी प्रारम्भ हो गई। राज्यपाल, न्यायपालिका, चुनाव आयोग एवं अन्य संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्ति सत्तासीन पार्टियों के समक्ष नतमस्तक होकर उन्ही के अनुसार कार्य करने लगे। राज्यपाल, राज्य स्तर पर सर्वोच्च पद पर होता है, जिसकी नियुक्ति केन्द्र में सत्तासीन सरकार के द्वारा की जाती है तथा उनसे यह आशा भी करती है कि वे संविधान की रक्षा करने में कोई लापरवाही नहीं करेंगे। उनको सरकार के द्वारा निवास हेतु सम्पूर्ण ऐश्वर्य से युक्त सबसे बड़ा बंगला, सुरक्षा हेतु सुरक्षाकर्मी तथा अन्य विलासिता से पूर्ण सुख-सुविधाएँ प्रत्येक क्षण उपलब्ध रहती हैं। प्रत्येक राज्यपाल पर जनता से कर के रूप में प्राप्त करोड़ो रुपया व्यय होता है। परन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के 10 वर्षो के पश्चात से ही राज्यपालों पर अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग के आक्षेप लगने प्रारम्भ हो गए। यदि इनके कार्यो से सम्बन्धित इतिहास का अवलोकन करें तो, स्पष्ट होता है कि अधिकांश राज्यपाल संविधान की रक्षा करने में पूर्णतया विफल रहे और स्थिति इतनी गम्भीर हो गई कि एक बार तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को भी राज्यपाल के अनुचित निर्णय के विरुद्ध अनशन पर बैठना पड़ा।

इतिहास में ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते है जब किसी राज्यपाल ने बहुमत से चुनी सरकार के स्थान पर अल्पमत सरकार को संविधान की शपथ दिलाई, जिससे उपरोक्त पार्टी के द्वारा विपक्षी विधायको को विभिन्न प्रलोभन के माध्यम से अपनी ओर आकर्षित करके बहुमत सिद्ध करने हेतु दीर्घ समय मिल जाए। इस प्रकार के कृत्य की एक ऐसे व्यक्तित्व से आशा नहीं की जा सकती, जिसके ऊपर जनता का करोड़ो रूपये व्यय होता है। संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों पर, जनता की आशानुरूप संविधान की रक्षा का विशेष दायित्व होता है।
रामराज्य की स्थापना हेतु संवैधानिक पदों पर आसीन, यथा – राष्ट्रपति, राज्यपाल, चुनाव आयोग, न्यायधीश, शासन/प्रशासन के अधिकारियों में निष्पक्षता का गुण होना अत्यन्त आवश्यक है। यदि देश अथवा किसी राज्य में ऐसा नहीं होगा तो उस देश में रावण राज्य स्थापित हो जाएगा, जिसके संहार हेतु पुनः श्रीराम को अवतार लेना होगा।

वरिष्ठ पत्रकार – योगेश मोहन


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