सिर्फ 6 महीने की मेहनत ने दिलाई अंतरराष्ट्रीय पहचान, 94 साल की दादी ने जीता स्वर्ण पदक

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मंत्रालय ने अपने ट्वीट में लिखा, "भारत की 94 वर्षीय भगवानी देवी ने एकबार फिर बतला दिया है कि उम्र तो सिर्फ एक नंबर है। उन्होंने गोल्ड और और ब्रॉन्ज मेडल जीता। वाकई में साहसिक प्रदर्शन...

दिल्ली के नजफगढ़ में रहने वाली भगवानी देवी डागर ने खेल जगत में अपनी एक अलग पहचान बना ली है. 94 वर्ष की उम्र में उन्होंने आज के युवाओं को भी पीछे छोड़ दिया है. वह इस उम्र के पड़ाव में भी इतनी फिट है जहा आज के युवा मात खा जाते है. इस आयु में उन्होंने वर्ल्ड मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 100 मीटर की स्प्रिंट को 24 सेकंड में पूरा कर दिखाया और स्वर्ण पदक हासिल किया.वहीँ उनके साथी प्रतिभागियो ने उसको पूरा करने में 2-2 मिंट तक का समय भी लिया. आगे आपको बता दें कि उन्होंने 100 मीटर स्प्रिंट इवेंट में गोल्ड मैडल के साथ इतिहास रचा साथ ही शॉटपुट में दो ब्रॉन्ज मैडल भी जीते.कुल मिला कर उन्होंने भारत के लिए 3 पदक जीते.इतनी उम्र में ये जज़्बा होना बहुत आश्चर्यजनक है. 94 साल के उम्र में भगवानी डागर ने यह साबित कर दिखाया कि सपनो कि कोई उम्र नहीं होती, कुछ कर दिखाने के लिए सिर्फ दृढसंकल्प ही काफी है.

WMAC क्या है और इसकी शुरुवात कबसे हुए?
वर्ल्ड मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप की शुरुआत 1975 में की गई थी. इस चैंपियनशिप में 35 साल से ऊपर आयु वर्ग के खिलाड़ी भाग ले सकते हैं. शुरुआत में केवल 5 ऐज ग्रुप को शामिल किया गया था, लेकिन अब 12 एज ग्रुप में स्पोर्ट्स इवेंट्स आयोजित कराए जाते हैं. वर्ल्ड मास्टर्स एथलेटिक्स में पहला ऐज ग्रुप 35 से ऊपर आयु वर्ग का है. दूसरा 40 साल से ऊपर, तीसरा 45 से ऊपर, चौथा 50 साल से ऊपर, पांचवां 55 साल से ऊपर, छठवां 60 साल से ऊपर, सातवां 65 से ऊपर, आठवां 70 साल से ऊपर, नौवां 75 साल से ऊपर, दसवां 80 साल से ऊपर, ग्यारहवां 85 साल से ऊपर और बारहवां 90 साल से ऊपर का है.

ये है भगवानी देवी की कहानी
भगवानी डागर दिल्ली के नजफगढ़ में अपने परिवार के साथ रहती है. इनकी ज़िन्दगी की बात करें तो यह काफी संघर्षपूर्ण महिला रही है. दादीजी के निजी जीवन की बात करे तो उन्होंने 29 साल में अपने पति विजय डागर को खो दिया था. जिसके कारण वह काफी अकेली पड़ गई थी लेकिन उनके बेटे हवा सिंह ने उनका साथ कभी नहीं छोड़ा. जिसके चलते उन्होंने कभी हार नहीं मानी और वह मेहनत करती रहीं उसके बाद उनकी ज़िन्दगी के कष्ट कम हुए.

अपने पोतो को मानती है आइडल
दरअसल उनके दो पोते है जिनका नाम विकास और विनीत डागर है. दोनों MCD स्कूल में टीचर हैं. विकास डागर अंतरराष्ट्रीय पैरा एथलीट भी हैं. उनको राजीव गांधी स्पोर्ट्स अवॉर्ड भी मिल चुका है. वह खुद 40 से ज्यादा राष्ट्राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पदक जीत चुके हैं.विकास ने बताया की उनकी दादी ने उन्हें देखकर खेलना शुरू किया. उनके अंदर एक हौसला आया और फिर वह इसकी तैयारी में लग गईं और उन्होंने मात्र 6 महीने की मेहनत में विदेश में अपना पंचम लहराया. बचपन में जिम्मेदारियों के बोझ के चलते वह अपनी प्रतिभा नहीं दिखा पाई थीं. लेकिन कहते हैं ना कि प्रतिभा कभी ना कभी बाहर आ ही जाती है और उम्र भी उसे छुपा नहीं सकती.

खेल मंत्रालय ने ट्वीट कर दी बधाई
मिनिस्ट्री ऑफ यूथ अफेयर्स एंड स्पोर्ट्स ने ऑफिशल ट्विटर अकाउंट पर उनकी तस्वीर को पोस्ट करते हुए तारीफ की है. मंत्रालय ने अपने ट्वीट में लिखा, “भारत की 94 वर्षीय भगवानी देवी ने एकबार फिर बतला दिया है कि उम्र तो सिर्फ एक नंबर है. उन्होंने गोल्ड और और ब्रॉन्ज मेडल जीता. वाकई में साहसिक प्रदर्शन. बड़े बड़े दीकगज़ लोग भगवानी देवी जी को बधाईया दे रहे है. और युवा पीड़े दादी से प्रेरणा ले रहे है.


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