दीपावली से पहले सपा में अखिलेश की तीसरी बार ताजपोशी की तैयारी! ये बन सकते हैं यूपी अध्यक्ष

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उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में हार के बाद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रदेश कार्यकारिणी को भंग कर दिया था. इसके बाद नए सिरे से पार्टी का संगठनात्मक...

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में हार के बाद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रदेश कार्यकारिणी को भंग कर दिया था. इसके बाद नए सिरे से पार्टी का संगठनात्मक मजबूत करने की कवायद शुरू की गई. इसी क्रम में पांच जुलाई से सदस्यता अभियान का शुभारंभ किया गया. यह सदस्यता अभियान 30 सितंबर तक चलेगा, इसमें किसी व्यक्ति को सपा की सदस्यता लेते वक्त सक्रिय सदस्य बनने के लिए पांच लोगों को पार्टी से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया. पार्टी सूत्रों के मुताबिक करीब दो करोड़ कार्यकर्ता बनाए जाएंगे.

अक्टूबर में होगा राज्य सम्मेलन और राष्ट्रीय अधिवेशन- समाजवादी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी और प्रवक्ता आशुतोष कुमार वर्मा ने फोन पर बात की. उन्होंने बताया कि 30 सितंबर को पार्टी का सदस्यता अभियान समाप्त हो रहा है. इसके बाद अक्टूबर में राज्य सम्मेलन और राष्ट्रीय अधिवेशन होगा इसकी तारीख और जगह की घोषणा जल्द पार्टी द्वारा की जाएगी.

जानें कब अखिलेश को मिली थी सपा की कमान
बताया जा रहा है कि दीपावली से पहले सपा का राज्य सम्मेलन और राष्ट्रीय अधिवेशन होगा. समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर भी इस अधिवेशन में मुहर लगेगी. इस दौरान निकाय चुनावों को लेकर कार्यकर्ताओं में जोश भरने की कवायद की जाएगी. बता दें कि शिवपाल यादल के हटने के बाद वर्ष 2017 में नरेश उत्तम पटेल सपा के यूपी प्रदेश अध्यक्ष बने थे. बताया जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष की रेस में अभी नरेश उत्तम पटेल अब भी कायम हैं क्योंकि वे अखिलेश यादव के भरोसेमंद माने जाते हैं.

राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिलेश को तीसरी बार ताज
अखिलेश यादव को लखनऊ में एक जनवरी 2017 को सपा संस्‍थापक मुलायम सिंह यादव को पद से हटाकर पहली बार अध्यक्ष बनाया गया था. इसके बाद 5 अक्टूबर, 2017 को आगरा के राष्ट्रीय अधिवेशन में सर्वसम्मति से अखिलेश को दोबारा राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया था. बता दें कि इसके लिए पार्टी संविधान में संशोधन किया गया था और अखिलेश को पांच साल के लिए अध्यक्ष चुना गया था. गौरतलब है कि पहले सपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का कार्यकाल तीन साल का होता था.


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